Monday 21 August 2017

फूल देई | Phool Dei Festival | Pahadi Festivals



यह त्यौहार चैत्र मास की संक्रान्ति को फूलदेई के रुप में मनाया जाता है, जो बसन्त ऋतु के स्वागत का त्यौहार है। इस दिन छोटे बच्चे सुबह उठकर जंगलों की ओर चले जाते हैं और वहां से प्योली/फ्यूंली, बुरांस, बासिंग आदि जंगली फूलो के अलावा आडू, खुबानी, पुलम के फूलों को चुनकर लाते हैं और एक थाली या रिंगाल की टोकरी में चावल, हरे पत्ते, नारियल और इन फूलों को सजाकर हर घर की देहरी पर लोकगीतों को गाते हुये जाते हैं और देहरी का पूजन करते हुये गाते हैं-

फुल देई

फूल देई, छम्मा देई,
देणी द्वार, भर भकार,
ये देली स बारम्बार नमस्कार,
फूले द्वार……फूल देई-छ्म्मा देई।
इस दिन से लोकगीतों के गायन का अंदाज भी बदल जाता है, होली के फाग की खुमारी में डूबे लोग इस दिन से ऋतुरैंण और चैती गायन में डूबने लगते हैं। ढोल-दमाऊ बजाने वाले लोग जिन्हें बाजगी, औली या ढोली कहा जाता है। वे भी इस दिन गांव के हर घर के आंगन में आकर इन गीतों को गाते हैं। जिसके फलस्वरुप घर के मुखिया द्वारा उनको चावल, आटा या अन्य कोई अनाज और दक्षिणा देकर विदा किया जाता है। बसन्त के आगमन से जहां पूरा पहाड़ बुरांस की लालिमा और गांव आडू, खुबानी के गुलाबी-सफेद रंगो से भर जाता है। वहीं चैत्र संक्रान्ति के दिन बच्चों द्वारा प्रकृति को इस अप्रतिम उपहार सौंपने के लिये धन्यवाद अदा करते हैं। इस दिन घरों में विशेष रुप से सई* बनाकर आपस में बांटा जाता है।मुझे याद आता है कि बचपन में हम इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते थे, चूंकि सड़्क के किनारे कस्बे में रहने की वजह से मैं जंगल नहीं जा पाता था, लेकिन आस-पास से प्योंली के फूल, भिटोरे के फूल (गेहूं के खेत में उगने वाला एक सफेद रंग का फूल, जिसमें लाल धारियां बनी होती हैं) और सरसों, आडू, पुलम, खुबानी के फूलों को एक थाली में सजाकर अपने घर के आस-पास के घरों में घूमा करते थे। जिस घर की देहरी हम पूजते, वहां से २० पैसे का एक सिक्का (पीतल वाला), गुड़, चावल और सई खाने को मिलता था।

गढ़वाल मण्डल में इस त्यौहार में बच्चों के अलावा पूरे परिवार के लोग शामिल रहते हैं। इस दिन गांव के लोग अपने घर में बोये गये हरेले की टोकरियों को गांव के चौक पर इकट्ठा करके उसकी सामूहिक पूजा करते हैं और हरेले के तिनके सभी परिवारों  उसके बाद नौले पर जाकर उनको विसर्जित कर दिया जाता है। इस प्रकार से बसन्त ऋतु के आगमन को हर्षोल्लास के साथ उत्तराखण्ड में मनाया जाता है। इस प्रकार से प्रकृति को धन्यवाद कहने के साथ  प्रकृति के इन रंगों (फूलों के रुप में) को अपनी देहरी पर सजाकर उत्तराखण्ड प्रकृति का अभिवादन करता है।
(*सई- यह उत्तराखण्ड का एक लोक व्यंजन है, इसे चावल के आटे से बनाया जाता है। चावल के आटे को दही में गूंथा जाता है। उसे घी में काफी देर तक भूना जाता है, जब यह भुनकर भूरा होने लगे तो इसमें स्वादानुसार चीनी मिला दी जाती है।)

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